साहस

समंदर में आज ख़ामोशी छाई थी
हर तरफ शांति समायी थी
धीरे से लहरें बह रही थी
मानो धीमे से वो कुछ कह रही थी
मौसम का रुख देख उसने नाँव बढ़ा दी
रेत से निकाल कर पानी पर चढ़ा दी
मंजिल तो पता थी पर ये सागर अनंत था
पहूँचे कैसे की सिर्फ क्षितिज ही इसका अन्त था
फिर भी आगे ही आगे वो बढ़ता गया
गहेरे पानी में की वो उतरता गया
मौसम के रुख ने की जैसे अब करवट ली
वो शान्ति चुपचाप खुद में सिमट ली
अब जो पानी का भंवर ऐसा आया
लगा की सब कुछ खुद में बहा ले गया
पर उस किश्ती की यही थी कहानी
की तूफ़ान से भी उसने हार नहीं मानी
लहरों पे लहेरे बढती गयी
वो किश्ती पानी में फंसती गयी
पर निकलने के लिए उसने भंवर को चीर दिया
तूफ़ान को उसने बदल समीर में दिया
तूफ़ान से निकल कर जैसे उसने अपनी नज़र घुमायी
अपनी मंजिल उसने अपने सामने पायी
यूँ तूफ़ान को हरा देने का अदम्य साहस जिसमे समाता हे
ऐसी किश्ती को समंदर भी दुआए देता हे

Comments

  1. i hope last line shud be "aisi kishti ko samandar bhi duae nawajta hai"
    a bit of meter loss in the end
    else its nice...
    nice to see a work of veer ras after so many days..
    keep up the good work

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