Be positive :- From Harivansh Rai Bachchan
अँधेरे का दीपक है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है ? कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था , भावना के हाथ से जिसमें वितानों को तना था , स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा , स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से , रसों से जो सना था , ढह गया वह तो जुटाकर ईंट , पत्थर कंकड़ों को एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है ? है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है ? बादलों के अश्रु से धोया गया नभनील नीलम का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक , मनोरम , प्रथम उशा की किरण की लालिमासी लाल मदिरा थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम , वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनो हथेली , एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है ? है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है ? क्या घड़ी थी एक भी चिंता नहीं थी पास आई , कालिमा तो दूर , छाया भी पलक पर थी न छाई , आँख से मस्ती